सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है ?
सामान्य भाषा मे इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक गुप्त जरिया है , जिसकी शुरुआत 2018 से हुई । यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी इसको सिर्फ भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है। इसमें बड़े पैमाने में गोलमाल होने की संभावना है । इसीलिए इसपर विवाद है।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर आज सोमवार 11मार्च2024 को एसबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पांच जजों की बेंच ने सुनवाई की जिसमे उन्होंने
एसबीआई की सभी दलीलों को खारिज करते हुए कल यानी की 12 मार्च 2024 तक SBI को सभी डिटेल्स सुप्रीम कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है। तथा 15मार्च तक सभी जानकारी जनता के लिये बेबसाइड पर डालने का निर्देश भी दिया है ।

सुनवाई के दौरान SBI की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील हरीश साल्वे ने जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था ।
इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में इन मुख्य बिंदुओं पर कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक SBI से जानकारी मांगी थी -खरीदारों के साथ-साथ बॉन्ड की कीमत -राजनीतिक दलों का विवरण,
-पार्टियों को कितने बॉन्ड मिले,
SBI के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि उपयुक्त जानकारी को निकालने के लिए एक पूरी प्रक्रिया को उलटना पड़ेगा, SOP के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि बॉन्ड के खरीदार और बॉन्ड की जानकारी के बीच कोई संबंध ना रखा जाए, इसे गुप्त रखना रखने की बात भारत सरकार की तरफ से की गयी थी , साथ ही बॉन्ड खरीदने वाले का नाम और खरीदने की तारीख भी कोड की गयी है जिसे डिकोड करने में समय लगेगा । SBI के वकील की इस दलील पर जस्टिस संजीव खन्ना ने सवाल किया कि एसबीआई को केवल सील्ड कवर को खोलना है, दिक्कत कहां है ।

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